छत्तीसगढ़ के प्रयाग राजिम के तिर म नदिया के पार म एक ठी गांव हे चमसुर। इहें जनम धरे रिहिन छत्तीसगढ़ महतारी के जुझारू बेटा पं. सुंदर लाल शर्मा। उंखर जनम 21 दिसम्बर 1881 के होय रिहिस। उंखर जिनगी के साल ल गिनबे तो उन जादा लंबा उमर नइ पाय रिहिन। सिरिफ 59 साल । अउ ये 59 साल म उंखर काम अइसे रिहिस के उंखर नांव जुग-जुग बर अमर होगे। उंखर राजनीति, समाज सेवा अउ साहित सेवा अतका ऊंचा दरजा के रिहिस के उन छत्तीसगढ़ के अगास म सुरज बरोबर चमकिन। हमर जोगनी कीरा मन के उंखर बारे म कुछू बोलना सुरुज ल दिया देखाय कस बात होही। उंखर इसकुली सिक्छा मिडिल इसतर तक होइस।
उंखर पिता पं. जयलाल तिवारी 18 गांव के मालगुजार रिहिन जेन उंखर ऊंच सिक्छा के बेवस्था घरे म करवा दिन। तेकर से पं. सुंदर लाल संस्कृत, हिंदी, अंगरेजी, उड़िया, बंगाली अउ मराठी भासा के संगे संग धरम, दरसन, संगीत, जोतिस अउ इतिहास के अच्छा जानकार बनिन। उंखर झुकाव साहित्य कोती होइस तो कई ग्रंथ के रचना करिन। जेखर संख्या लगभग 22 हे। अतकेच न हि उन चित्रकार अउ मूरतीकार घलो रिहिन। फेर उंखर जीवन के जादा से जादा समय आंदोलन अउ समाज सुधार के काम म खप गे। उंखर एक आंखी म समाजिक दुवाभेदी अउ ऊंचनीच के पीरा दिखथे तो दूसर आंखी म देस के गुलामी के आंसू। उंखर एक कदम समाज सुधार बर उठय तौ दूसर कदम देस ल आजाद कराय के आंदोलन बर तियार राहय। उन सतनामी समाज के हीन दसा से बहुत दुखी रिहिन। सतनामी समाज के मंदिर परवेस के घटना उंखरे पुरसारथ से संभव हो सकिस। ये घटना के गूंज पूरा देस म सुनइस अउ हरिजन उद्धार कारकरम म सुंदर लाल शर्मा ल महात्मा गांधी अपन गुरू मानिन।
अंगरेज सासन के किरपा ले उन तीन बार जेल के सजा घलो भोगिन। जंगल सत्याग्रह म दू बार अउ गांधीजी के असहयोग आंदोलन म एक बार। एकर छोड़ कंडेल नहर सत्याग्रह म घलो अंगरेज सासन के विरोध देखे बर मिलथे। इही आंदोलन ल गति देय बर पं. सुंदरलाल शर्मा महात्मा गांधी ल छत्तीसगढ़ आय के नेवता दीन अउ 20 दिसम्बर 1920 म पहिली बार महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ आगमन होइस। आज के पीढ़ी भले पवन दीवान ल “पवन नहीं वो आंधी है, छत्तीसगढ़ का गांधी है” कहि देथे फेर छत्तीसगढ़ के गांधी कहाय के असली हकदार तो पं. सुंदर लाल शर्माच हरंय।
भले पं. सुंदर लाल शर्मा साहित्य कोती कम धियान दीन तभो ले 22 ग्रंथ के रचना छोटे-मोटे बात नोहय। एमा कविता, कहिनी, नाटक अउ उपन्यास जइसे बिधा सामिल हे। एमा सबले जादा चरचित होइस छत्तीसगढ़ी भासा म लिखे उंखर परबंध काब्य “छत्तीसगढ़ी दानलीला” जेला छत्तीसगढ़ी के पहिली परबंध काब्य घलो केहे जाथे। मैं ह तो आज के लइका अंव। मैं पं. सुंदर लाल शर्मा के नांव ल छत्तीसगढ़ी दानलीला के कारन ही जानेंव। जब भी पं. सुंदर लाल शर्मा के चरचा होही दानलीला के घलो चरचा होही। यदि ये केहे जाय के पं. सुंदर लाल शर्मा अउ दानलीला एक दूसर के परयाय बन गे हे तो कोई गलत नइ होही। ए करा एक ठी सवाल उपर बिचार करे जा सकथे के पं.जी अतेक जादा साहित्य रचिन फेर दाने लीला के चरचा जादा काबर होथे? एकर जवाब हे महतारी भाखा के ताकत। “राम चरित मानस” अतेक परसिद्ध अउ लोकप्रिय काबर होइस? “गीतांजलि” ल नोबल पुरस्कार काबर मिलिस? ये सबके एके जवाब हे महतारी भाखा के ताकत। महतारी भाखा म जतका असरदार रचना रचे जा सकथे दूसर भाखा म नइ रचे जा सकय। पहिली घलो केहे जा चुके हे के पं. जी जादा लंबा उमर नइ पाइन। उखर जीवन के जादा समय देस के आजादी अउ समाज सुधार के आंदोलन म खप के। साहित्य पिछुवा गे। यदि उंखर जीवन म 15–20 बछर अउ जुड़ जातिस पिछुवाय साहित्य घलो अगुवातिस। जइसे उन दलित जात के उद्धार करिन वइसने दलित महतारी भाखा के घलो उद्धार करतिन। आज हमर महतारी भाखा के दुरदसा ल देख के बड़ दुख होथे।
हमर एक झन सियान साहितकार अउ छत्तीसगढ़ी पतरिका के संपादक आदरनीय नंद किशोर तिवारी के कहना हे हमर जुन्ना नामी साहितकार मन हिन्दी मोह म छत्तीसगढ़ी कोती बिलकुल धायान नइ दीन। यदि वोमन छत्तीसगढ़ी भासा म अपन रचना करतिन तौ जतका नांव वोमन हिंदी साहित्य म कमइन ओतके छत्तीसगढ़ी म घलो कमा सकत रिहिन। उंकर मन के हिन्दी मया ह छत्तीसगढ़ी बर सराप बन गे। इही आजो होवत हे। फेर ये जघा पं. सुंदर लाल शर्मा के पैलगी करना परही के उंखर उपर ये दोख नइ लगाय जा सकय। “छत्तीसगढ़ी दानलीला” परमान हे उंखर छत्तीसगढ़ी मया ल साबित करे बर। सिरतोन म वो महा मानव रिहिन। उंखर सुरता ल बारम्बार परनाम हे!
जात-पांत के भेद मिटाये, काटे ऊंच-नीच के जाल।
देस-धरम बर तन ल खपाये, जै हो जै हो सुंदरलाल।
जै हो जै हो सुंदर लाल।।
–दिनेश चौहान
राजिम, छत्तीसगढ़
Mo. 9826778806
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